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Showing posts from December, 2020
  हलधर सेना   हिमालय का सुगन्ध अपने बदन पर लेप स्पर्श की है गहराई रहस्यलोक की मैदानों की नाभि पर सर रख सोता हूँ तुच्छ लोग समझते हो हमें?   रोम रोम में दहकती है बालियों की ओस स्वप्न में इकट्ठा कर रखा है धान से भरा खलिहान हथेली पर हैं गंगा रावी रेवा भीमा कान रोप सुनते हैं हम बिजलियों का गीत।   कंधों पर उठाए हल गैंती कुदाल निवारे हैं हम अहल्या का शोक पोषण पसीने का है ईख गेंहु और जौ में आदिम अनन्त मनुष्यता हैं हम।   रोज डुबाते, रुलाते, बहाते हो हमें सर तक जला, काट करते हो टुकड़े हमारे मौत से लौट चुके हैं हम इस बार – खत्म होगा रावणवध से यह दशहरा।   [ कवि तन्मय वीर रचित मूल बांग्ला कविता का हिन्दी रूपान्तर – विद्युत पाल]
হলধর সেনা সুবাস মেখেছি নগাধিরাজের অতল ছুঁয়েছি, রহস্যলোক মাঠের নাভিতে মাথা রেখে শুই আমাদের ভাবো নগণ্য লোক ?    রোমে রোমে জ্বলে শিষের শিশির স্বপ্নে জমানো গোলা ভরা ধান তালুতে গঙ্গা রাভি রেবা ভীমা কান পেতে শুনি বজ্রের গান। হাল কাঁধে নিয়ে গাইতি কোদালে শমিত করেছি অহল্যা শোক ঘামের পুষ্টি আখ গম যবে আমরা আদিম অনন্ত লোক। নিয়ত ডোবাও, কাঁদাও ভাসাও পুড়িয়ে আশির, কেটে করো ফালা প্রাণান্ত থেকে ফিরেছি এবার - সমাপ্ত হবে দশেরার পালা।